भारतीय ग्राहक आन्दोलन उत्थान विधि-निषेध |
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पार्श्वभूमि:ग्राहक
आन्दोलन का बोलबाला दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। १९७४ में प्रथम पुणे में ग्राहकों के
जन आन्दोलन का प्रारंभ हुआ। इसके पूर्व ग्राहकों का निर्देशन करने वाली एक भी संस्था
नहीं थी। पुणे में १९७४ में मैंने जब ग्राहकों के जन आन्दोलन की कल्पना प्रथम लोगो
के सम्मुख रखी, तब उसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया । उलटे कुछ लोगो ने उसका उपहास
भी किया। परन्तु यह भी बताना उचित होगा की पुणे के कुछ महानुभावो में 'सोबत' के संपादक
श्री ग. वा. बेहरे ,दैनिक सकाळ के संपादक श्री मुणगेकर,पु. ल. देशपांडे, मुकुंदराव
किर्लोस्कर,कमल पाध्ये कुलपति श्री दाभोलकर प्रमुख रहे। इनका सक्रिय सहभाग था। पुणे
में कुछ समय तक आन्दोलन का कार्य चलने के बाद न्या. छागला द्वारा ग्राहक पंचायत के
नाम से इस कार्य का लौकिक उद्घाटन किया गया।
ग्राहक आन्दोलन के ३८ वर्षा हो चुके हैं। इन ३८ वर्षो में ग्राहक पंचायत का संगठन देश
के सभी राज्यों में एक सहस्त्र स्थानों पर खड़ा है। ग्राहक संगठन का सुचारू कर्यजाल
ग्राहक पंचायत के रूप मैं फैला हुआ है। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर अनेक क छोटे
छोटे ग्राहक संगठन स्थापित हैं। ग्राहकों के पक्ष में निर्णय आ रहे हैं। शासन ने इस
आन्दोलन को मान्यता प्रदान की है । ग्राहक संरक्षण अधिनियम बन चुका है । न्याय मंच
काम कर रहे हैं, समाचार पत्रों में स्तम्भ प्रकाशित हो रहे हैं। अनेक संस्थाओं ने ग्राहकों
के परिवादों, व्यथाओ की सुनवाई करने हेतु "ग्राहक कक्ष" खोले हैं। सब मिला कर ग्राहक
आन्दोलन का बोलबाला देश में बढ़ रहा है।
ग्राहक आन्दोलन भारत में स्वयंप्रेरणा से प्रारंभ हुआ। और तब शासन द्वारा उसे समर्थन
मिला। ग्राहक संरक्षण अधिनियम १९८६ में ग्राहक पंचायत के संगठन ने प्रथम प्रस्तुत किया
और तब बाद में शासन ने उसे स्वीकार किया। '२४ दिसम्बर यह भारतीय ग्राहक दिन है 'यह
१९९० ग्राहक पंचायत आन्दोलन ने प्रथम घोषित किया और तत्पश्चात शासन उसमे अधिकृत रूप
से सहभागी हुआ। ग्राहकों का संगठन पंजीकृत करने के लिए स्वतंत्र 'ग्राहक संगठन पंजीकरण
अधिनियम १९९१' का नया विधेयक ५ सितम्बर १९९२ के दिन ग्राहक पंचायत आन्दोलन ने प्रथम
लोकसभा में प्रविष्ट किया। भविष्य में शासन द्वारा यह अधिनियम बना दिया जायेगा। केंद्र
शासन में ग्राहक कल्याण मंत्रालय नामक स्वतंत्र मंत्रालय हो इस दृष्टि से ग्राहक पंचायत
ने उसका प्रारूप भी बनाया है। शासन उसको भी भविष्य में स्वीकार करेगा। |